नवदुर्गा कथा | Navdurga Katha in Hindi
नवदुर्गा कथा (Navdurga Katha) देवी दुर्गा की नौ अवतारों की महिमा का वर्णन करती है। यह कथा विशेष रूप से नवरात्रि के पर्व के दौरान सुनाई जाती है।नवरात्रि में हम माँ दुर्गा के 9 रूपों की पूजा करते हैं। इन 9 दिनों की उपासना में माँ के भिन्न-भिन्न रूपों का अलग ही महत्व है। माँ के प्रत्येक रूप के पीछे धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है।
आइए विस्तार में जानते हैं नवदुर्गा कथा। माँ दुर्गा ने विश्व के कल्याण तथा दुष्ट दानवों का विनाश करने के लिए कई बार अपने अलग-अलग रूप धारण किए थे।
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शैलपुत्री:
नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है। जब देवी सती ने अपने पिता के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान सुनकर आत्मदाह कर लिया था, तब इन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में दूसरा जन्म लिया। पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पार्वती तथा हेमवती इनके अन्य नाम हैं। माँ के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल है, जहाँ त्रिशूल विध्वंस का प्रतीक है वहीं कमल सौम्यता का प्रतीक है। जहाँ माँ एक तरफ असुरों का मर्दन कर सकती हैं, वहीं दूसरी ओर कमल यह दर्शाता है कि माँ शांति, आनंद और धर्म की स्थापना भी कर सकती हैं।
ब्रह्मचारिणी:
देवी सती ने जब शैलपुत्री के रूप में दूसरा जन्म लिया, तब उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की, जिससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। ऐसी कठोर तपस्या पहले कभी किसी ने नहीं की थी, इस कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। यह मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। यह माँ के तप और त्याग का स्वरूप है। इसमें माँ ने सफेद वस्त्र धारण किए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि हमें तप और त्याग के माध्यम से अपने अध्ययन में ध्यान लगाना चाहिए।
चंद्रघंटा:
माँ के इस रूप में मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। यह समृद्धि और सौभाग्य की सूचक हैं। माँ के इस स्वरूप में उनके 10 हाथ हैं, जिनमें कुछ हाथों में शस्त्र हैं और कुछ में कमल, घंटा, कमंडल और कलश सुशोभित हैं। माँ का यह स्वरूप भक्ति और शक्ति से परिपूर्ण है।
कूष्मांडा:
कूष्मांडा देवी के चौथे रूप में पूजी जाती हैं, जो ब्रह्मांड की सृजनकर्ता मानी जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवी ने अपनी मुस्कान से इस ब्रह्मांड की रचना की। इस रूप में देवी ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक हैं, और उनके पूजन से जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है। जब इस सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं आदिशक्ति माँ दुर्गा ने इस ब्रह्मांड की रचना की। यह समस्त वसुधा की ज्योति हैं।
स्कंदमाता:
स्कंद, जो भगवान कार्तिकेय का दूसरा नाम है, उनकी माँ होने के कारण माँ दुर्गा के इस पाँचवें रूप को स्कंदमाता कहा जाता है। इस रूप में भगवान कार्तिकेय बाल स्वरूप में इनके गोद में बैठे होते हैं। स्कंदमाता की पूजा करने से बालरूपी स्कंदकुमार अर्थात भगवान कार्तिकेय की पूजा स्वयं हो जाती है। यही गौरवशाली, मनोहर एवं सर्वशक्तिमान हैं। माँ के इस स्वरूप में उनके हाथ में भगवान स्कंद हैं और किसी अन्य हाथ में कोई शस्त्र नहीं है, क्योंकि माँ का यह स्वरूप मातृत्व और ममता का प्रतीक है।
कात्यायनी:
पूर्वकाल में कात्यायन नाम के एक ऋषि हुए थे। इन्हीं ऋषि ने बहुत वर्षों तक माँ भगवती की तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी कि माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। कहा जाता है कि जब दैत्य महिषासुर का वध करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने तेज के अंश से माँ दुर्गा को उत्पन्न किया, तब महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम उन देवी दुर्गा की पूजा की थी। इसी कारण से माँ दुर्गा का यह रूप देवी कात्यायनी कहलाया। ऐसी मान्यता है कि देवी कात्यायनी ऋषि कात्यायन के यहाँ पुत्री के रूप में उत्पन्न हुई थीं। यह कृपालु और प्राणियों की मनोकामना पूर्ण करने वाली हैं। माँ का यह स्वरूप शक्ति का प्रतीक है।
कालरात्रि:
अशुभ विनाशिनी, अमंगल नाशिनी देवी कालरात्रि हैं। इसी रूप में माँ ने रक्तबीज का संहार किया और धर्म की स्थापना की। यह माँ का प्रचंड और रौद्र स्वरूप है। रक्तबीज एक ऐसा असुर था जिसके रक्त की हर एक बूँद से उसके जैसे ही एक अन्य असुर का जन्म हो जाता था। तब माँ ने कालरात्रि के रूप में रक्तबीज के रक्त का पान किया और उसका संहार किया।
महागौरी:
देवी महागौरी ने अपने पार्वती रूप में भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया था, जिससे इनका रंग काला पड़ गया था। फिर भगवान शिव ने अपनी जटाओं से गंगा की बौछार माँ पार्वती पर की, जिससे इनका शरीर सफेद हो गया और तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा। यह क्षमाशील तथा संसार के सभी लौकिक पापों का विनाश करने वाली देवी महागौरी हैं। यह माँ का प्रेममयी और करुणामय स्वरूप है।
सिद्धिदात्री:
नवदुर्गा का अंतिम रूप सिद्धिदात्री का है, जो सभी प्रकार की सिद्धियों की प्रदाता मानी जाती हैं। देवी के इस रूप में आठ सिद्धियां होती हैं, जिन्हें प्राप्त कर व्यक्ति हर प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। यह रूप ध्यान, साधना और जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति का प्रतीक है। यह देवी सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। संसार की सभी सिद्धियों की स्वामिनी और प्रदाता देवी सिद्धिदात्री हैं। माँ का यह स्वरूप भक्तों पर अनंत कृपा बरसाने वाला है। यह माँ का अंतिम, पूर्ण, असीम और दयालु स्वरूप है।
नवदुर्गा कथा की विशेष महत्व | Navdurga Katha
नवदुर्गा की कथा (Navdurga Katha) हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं में संघर्ष, धैर्य, और आस्था से जूझने का पाठ सिखाती है। हर रूप की एक विशेष कथा और महत्व होता है, जो भक्तों को साहस, भक्ति, और अंततः मुक्ति की ओर प्रेरित करता है।
नवदुर्गा माता के 9 नाम क्या हैं?
माँ ब्रह्मचारिणी
माँ चंद्रघंटा
माँ कूष्मांडा
माँ स्कंदमाता
माँ कात्यायनी
माँ कालरात्रि
माँ महागौरी
माँ सिद्धिदात्री
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